श्रीमुख चौपदी
श्रीमुख चौपदी
मूळ स्थानी भिडु बांधों हो जोइ : जेवी ना काळु कळाइ :
गुरु बचनें वोडियाना बांधो : जेवि ना चंचळु होइ : |धृपद |
गोरक्षु हो सुनी बंधी स्थीरू होइ : जेणें तुम्ही जाया :
सो परी मारो बैरी : आनु ना कोइ :पांचै पंचाएन :
पांचै जन हो : धावति आनानि स्थानी :
उन्मनी कारणें निजमुनी लीन : तें मारिएले निजस्थानी : ॥ १ ॥
पवन पुरो मन स्थीर करो हो जोइ : चंद्रा मिलावो भानु :
आया गमन ये दुइ निवारों: बुद्धि राखो आपणा : ॥२॥
भाटी जाती निवारो हो : भीडे वायों न जाइ:
अखै निरंजनी लो करो हो : भावो अभावो ना होइ : || ३ ||
" ( हे चौपदी गोसावी गाइली : राग धनाश्री)
(लीलाचरित्र उ . २१६ उमाइ गायन प्रसंगे चौपदी गाववणें )