॥ प्रकाशकीय ॥

(श्रीमद्भगवद्गीता )
उत्तर भारत में जयकृष्णी सम्प्रदाय की "सरल हिन्दी गीता" हमारे दादा गुरु प. पू. प. म. श्री जयतिराज बाबा (जालन्धरीय) द्वारा 85 वर्ष पूर्व प्रकाशित की गई। भाषा की सरलता एवं मधुरता के कारण हिन्दी प्रान्त में उसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। यही एक सरल गीता है, जिसके अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। हमारी पुरानी परम्परा है कि गुरुजनों के द्वारा उपदेश (नाम) देते समय शिष्यों को गीता, चालिसा, माला और विशेष प्रसन्नता के रूप में दिये जाते हैं। अतः भक्त जनता पूजा विधि के बाद, श्री गीता जी का पाठ करने के बाद ही अन्न जल ग्रहण करते हैं। अन्न, वस्त्र, द्रव्यादि अनेक प्रकार के दान किये जाते हैं, उनमें ज्ञान का दान सर्व श्रेष्ठ माना है। ज्ञान दान के लिये ही परमात्मा सृष्टि की रचना करवा कर, स्वयं मनुष्य रूप में अवतरित होकर, ज्ञान का दान करके, जीवों का अज्ञान दूर करके, उन्हें अविद्यादि बन्धनों से मुक्त करके, परमानन्द प्रदान करते हैं।
सन् 1978 के आरम्भ से मैंने चण्डीगढ़ में रहना शुरु किया। तब से ही मैंने "सरल हिन्दी गीता" का दान शुरु किया है। त. द्रोपदा बाई जी 'श्री गोपाल मन्दिर नया मुहल्ला, पुलवंगश, दिल्ली का संचालन करते हुए "सरल हिन्दी गीता" का प्रकाशन करके लागत मात्र 5 रु. प्रति गीता वितरित करते रहते थे। उनसे खरीद कर हम मुफ्त गीता दिया करते थे। आगे चल कर गीता की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए हमने एक बार भक्तों के सहयोग से 1000 गीता छपवा कर वितरित की। वैसे
भक्त श्री बालकृष्ण जी गरोवर तथा भक्त श्री मदन मोहन जी सूरी ने गीताएं धर्मार्थ छपवाई थीं। हमने उनसे लेकर बहुत गीताएं बाँटी ।
चार वर्ष पूर्व हमने भक्त जनता के आर्थिक सहयोग से 3100 गीता छपवा कर वितरित की। अब की बार 4000 गीताएं छपवाई है। इनमें से 1000 हजार
गीता का खर्च सद्भक्त श्री जी.डी. खन्ना (अहमदाबाद, गुजरात) ने बहन किया तथा 500 गीता का खर्च ने सद्भक्त श्री वासुदेव जी सूरी (नौएडा) ने अपने परिवार की ओर से अपने भाई कै. महन्त श्री बल्हाड़ बुआजी उर्फ (म. श्री दयाल मुनि जी ) की स्मृति में वहन किया है। शेष 2500 गीता का खर्च अनेक सद्भक्तों की ओर से हमने वहन किया है।
जिन 2 सद्भक्तों की ओर से गीता प्रकाशन के इस परम पवित्र कार्य के लिये निष्काम भाव से दान प्राप्त हुआ है, परमात्मा उन्हें सह परिवार सब प्रकार सुखी रखें एवं भक्त जनता प्रेम पूर्वक गीता पढ़े, समझे और उसके अनुसार आचरण करके अपने. आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे। यही प्रभु चरणों में प्रार्थना है।
-म. मुकुन्दराज