श्रीदत्तात्रेय चालिसा
दोहा
महन्त गोपाल मुनि आराध्य
जिन के सिमरण मात्र से सिद्ध होय सब काज ।
सो हमपर किरपा करे श्रीदत्तात्रेय महाराज ।।
चौपाई
जगद्गुरु श्रीदत्तात्रेय स्वामी ।
जगत्बंधु प्रभु अंतर्यामी ।
निर्गुण पार ब्रह्म परमेश्वर ।
निर्विकार मालक सर्वेश्वर ।
देव सकल जिनके गुण गावें ।
ऋषि मुनि योगी पार न पावें ।
तीन लोक के पालन हारे ।
भक्त जनों के प्राण पियारे ।
ब्रह्मा विष्णु महेश ध्यावें ।
नित चरणों पर सीस झुकावें ।
अनसूया के सुत हितकारी ।
आपके चरणों पर बलीहारी ।
तीनों देवता मिल इक बार ।
आए अनसूया के द्वार ।
तीनों लेन परीक्षा आए ।
कंकर पत्थर साथ ले आए ।
दोहा
अनसूया को दे दिये कंकर कहा उचार ।
देवी तुम इनकी करो फौरन खीर तैयार ।।
चौपाई
मर्म सती ने उनका जाना ।
सोचा हुआ इन्हें अज्ञाना ।
देगची में वह कंकर पावे ।
नीचे अग्नी सती जलावे ।
मन में सिमरत अपना बालक ।
श्रीदत्तात्रेय जग के पालक ।
दीन दयाल दया तब कीनी ।
खीर उन्हीं की तब कर दीनी ।
अनसूया फिर देव बुलाए ।
खीर देख तीनों घबराए ।
कौन प्रभु की माया जाने ।
ब्रह्मा विष्णु महेश लजाने ।
फिर तीनों ने कहा आखीर ।
वस्त्र उतार परोसो खीर ।
इतने में श्रीदत्तात्रेय आए ।
कौतुक अचरज आन दिखाए ।
दोहा
तीनों बालक होगये ब्रह्मा विष्णुमहेश ।
अपनीमाया डाल कर खेलन गए सर्वेश ।
चौपाई
पारबती ब्रह्माणी आई |
लक्ष्मी ग्रीवा आन झुकाई ।
देंखे बालक रुप स्वामी ।
कहें बक्ष दो अन्तर्यामी ।
अनसूया को सीस झुकावें ।
नेत्रों से जल धार बहावें ।
देव नारियां दुःखी निहारी ।
श्रीअनसूयाजी उच्चारी ।
रक्षा करो प्रभुदेव बनाओ ।
इनका बालकरुप मिटाओ ।
श्रीदत्तात्रेय किरपा किनी ।
वह माया पल में हर लिनी ।
श्रीदत्त हैं वह जो दे दिखलाए ।
आत्रेय अत्री के घर जाए ।
तब से नाम दत्तात्रेय आया ।
सैंगऋषि पहले सदवाया ।
दोहा
धन धन श्रीदत्तात्रेयजी अजर अमर सर्वेश ।
स्तुति करें कर जोंड कर ब्रह्मा विष्णु महेश ||
चौपाई
श्रीदत्तात्रेय सब गुणखान ।
मुझ पर कृपा करें भगवान ।
शंख चक्र और गदा को धारें ।
वे प्रभु हमरे कष्ट निवारें ।
हाथरुप जो पात्र बनावें ।
ब्रह्मादिक लोकों में जावें ।
नमस्कार मेरी अन्तर्यामी ।
नमस्कार मेरी सब के स्वामी ।
निर्मल रक्तवर्ण सुखदाई ।
तन पर सुन्दर भस्म रमाई ।
सुन्दर नैन कमल सम सोहें ।
सकल जगत के मन को मोहें ।
नमस्कार मेरी बारम्बार ।
श्रीदत्तात्रेय पूरण अवतार ।
केयूरन की माला पहिनें ।
दया रुप हैं जिन के गहनें ।
दोहा
जयरुप सिर पर मुकुट कानन कुण्डलधार ।
मुझ पर किरपा करें श्रीदत्तात्रेय अवतार ।।
चौपाई
मुख प्रसन्न जिन का अतिसोहे ।
रतिपति के मन को आति मोहे ।
मुक्तिभुक्ति के देवनहारे ।
जय जय सुन्दर सुवन प्यारे ।
पूरण ब्रह्म सुखों के दाता ।
हे प्रभु सकल जगत भय त्राता ।
नमस्कार मेरी दीनदयाल ।
हे प्रभु श्रीदत्तात्रेय किरपाल ।
राजाओं के राजा स्वामी ।
सुख स्वरूप प्रभु अन्तर्यामी ।
मंगल रुप विश्व के कर्ता ।
पालनहार जगत के भरता ।
निशिदिन प्रभु तुमरे गुण गाऊं ।
आप के चरणों शीश झुकाऊं ।
हे श्रीदत्तात्रेय पालनहार ।
नमस्कार मेरी बारम्बार ।
दोहा
जितने भोग हैं जगत के रखें न उन में ध्यान ।
वे मुझ पर किरपा करें श्रीदत्तात्रेय भगवान ||
चौपाई
नित योगीजन जिन को ध्यावें ।
आगम निगम भेद न पावें ।
उनकी चरणी सीस झुकाऊं ।
उन के गुणानुवाद मैं गाऊं ।
पूरवादि जो दिशा हैं चारें ।
वही वस्त्र जिस तन पर धारे ।
केवल एक कुपीन लगाई ।
भक्त जनों के जो सुखदाई ।
अजड ते जड चिज्जड माया ।
उस से तन जिस नाथ सजाया ।
पांच भूत जो नहीं अपनावें ।
ब्रह्मचर्य को पाल दिखावें ।
दंडीरूप मेरे भगवान ।
नमस्कार मेरी हर आन ।
बालक लीला कभी दिखावें ।
योग भोग भी जो बरसावे ।
दोहा
करूं उसी की वन्दना जो मेरे भगवान ।
अपनी भक्ति का सदा देना मुझको दान ।।
चौपाई
भूतादि की पीडा हरते ।
दूर सकल बाधा को करते ।
ग्रह पीडा को दूर भगावें ।
डर तकलीफ निकट नहीं आवें
जो कोई प्रभु का नाम ध्यावे ।
निर्धनपन उस का मिट जावे ।
नमस्कार मेरी हे भगवंता ।
अजर अमर निर्गुण गुणवंता ।
त्रेता युग मगहर माह आया ।
शुक्रवार तव परम सुहाया ।
शुक्ल पक्ष चौदश को प्रातः ।
अनुसूया ने जाए दाता ।
सर्व व्यापक घट घट वासी ।
त्रैलोकी हैं जिन की दासी ।
रिध्दि सिध्दि हैं जिनकी चेरी ।
नमस्कार हो उन को मेरी ।
दोहा
सर्वतीर्थ तालाब को जो जग में प्रगटान ।
वह किरपा मुझपर करें श्रीदत्तात्रेय भगवान ॥
चौपाई
लाल कमल सम चरण पियारे ।
भक्त जनों ने हिरदेधारे ।
रेणुका आदिको तारनहारे ।
परशुराम के कष्ट निवारे ।
सुखी लकडी हरी बनाई |
परशुराम देखी प्रभुताई ।
परशुराम तब सीस झुकाया ।
जय जय मुख से वचन सुनाया ।
सकल देव जिन के गुणगावें ।
वे प्रभु मुझ को पार लगावें ।
सर्व साक्षी प्रभुज्ञान स्वरुपा ।
दीनबन्धु भूपन के भुपा ।
अपने आप जो प्रगटे स्वामी ।
सो श्रीदत्तात्रेय अन्तर्यामी ।
कृष्णरुप जिस प्रभु ने धारा ।
जिसने गीता गीत उचारा ।
दोहा
उसको मेरी वंदना निशिदिनी बारम्बार ।
मेरे हिरदे में बसे श्रीदत्तात्रेय अवतार ॥
चौपाई
भृगु ऋषि ने जो कुछ गाया ।
वही दास भाषा में लाया ।
टूटे शब्द प्रभु अपनाओ ।
अपनाशुद्ध स्वरुप दिखाओ ।
इस स्तोत्र को जो जन गावे ।
वह नर नहीं चुरासी पावे ।
कामना पूरण करते स्वामी ।
श्रीदत्तात्रेय प्रभु अंतर्यामी ।
जो श्रीदत्तात्रेय सिमरण करता ।
वह अपवित्र हो कभी न मरता ।
धन और धान्य सकल वह पावे ।
जो श्रीदत्तात्रेय नाम ध्यावे ।
आवे निकट न कभी बिमारी ।
कष्ट सकल हरते पापारी ।
जो नर दत्तात्रेय गुण गावे ।
मुक्ति पदारथ वह पा जावे ।
दोहा
उनकी लम्बी उमर हो यह स्तोत्र करें जो गान ।
डाकिनी यक्ष पिशाच भी निकट कभी नहीं आन ॥
चौपाई
इस स्तोत्र को जो कोई गावे ।
दंड न तन का उसे डरावे ।
भक्तों श्रीदत्तात्रेय ध्यावो ।
अपना जन्म सफल कर जावो ।
प्रातः दोपहर शाम को भजना ।
इस स्तोत्र को कभी न तजना ।
एक हजार बार जो गावे ।
वह नर भुक्ति मुक्ति को पावे ।
उस को श्रीदत्तात्रेय स्वामी ।
दर्शन देवें अन्तर्यामी ।
भृगुऋषि यह शब्द उचारे ।
मिथ्या तनिक नहीं हैं प्यारे ।
नमस्कार मेरी हे जगपालक ।
अनसूया के प्यारे बालक ।
जय जय श्रीदत्तात्रेय स्वामी ।
नमस्कार मेरी अन्तर्यामी ।
दोहा
भक्तन की रक्षा करो हे प्रभुदीनदयाल ।
आया हैं प्रभु आपके द्वारे पर गोपाल ॥
॥ इति श्रीदत्तात्रेय चालिसा संपूर्णम् ॥